रिश्तों के सब तार बह गए
हम नदिया की धार बह गए.
अरमानों की अनगिन नावें
विश्वासों की दो पतवारें
जग जीतेंगे सोच रहे थे
ऊँची लहरों को ललकारें
सुविधाओं के भंवर जाल में
जाने कब मझधार बह गए.
बहुत कठिन है नैया अपनी
धारा के विपरीत चलाना
अरे..! कहाँ संभव है प्यारे
बिन डूबे मोती पा जाना
मंजिल के लघु पथ कटान में
जीवन के सब सार बह गए.
एक लक्ष्य हो, एक नाव हो
कर्मशील हों, धैर्य अपरिमित
मंजिल उनके चरण चूमती
जो साहस से रहें समर्पित
दो नावों पर चलने वाले
करके हाहाकार बह गए.
(लघु पथ कटान =shortcut roots , चित्र गूगल से साभार.)
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दो नावों पर चलने वालेकरके हाहाकार बह गए.बहुत सुन्दर। शब्द और भाव का अच्छा संयोजन।सादर श्यामल सुमन09955373288www.manoramsuman.blogspot.com
दो नावों पर चलने वालेकरके हाहाकार बह गए.bahut badhiya!
बहुत सही!! बढ़िया!
बहुत सुंदर कविता!जिस में शब्द हैं ,प्रवाह है ,अर्थ हैअर्थात सारे नियमों को पूरा करती हुई सम्पूर्ण कविताबधाई
मंजिल के लघु पथ कटान मेंजीवन के सब सार बह गए.सुविधाओं के भंवर जाल मेंजाने कब मझधार बह गए.bahut hee sunder abhivykti……..
bahut sundar geet…bahut khoob…
@ अरमानों के कई नाव थे— यहाँ कुछ खटकाता है , नाव स्त्रीलिंग शब्द है ! @ दो नावों पर चलने वालेकरके हाहाकार बह गए— दो नावों पर पैर रखने वाले की टंगिया नहीं फटी ? आभार !
सुविधाओं के भंवर जाल मेंजाने कब मझधार बह गए.सही कहा है । सुन्दर रचना ।
"मंजिल के लघु पथ कटान में जीवन के सब सार बह गए."देवेन्द्र भाईवैसे तो पूरी कविता शानदार की श्रेणी में रखी है पर उसमे से दो पंक्तियां सवा सोलह आने मानकर चिपकाई गई… आप इतना गहरा सोचियेगा तो हमें ईर्ष्या हो जायेगी !
प्रेरक रचना… बच्चन जी की ‘राह चुने तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला’ याद आ गई. साथ ही एक शेरःजिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र हैहमने तो कभी मील का पत्थर नहीं देखा.
सच को कहती सुन्दर अभिव्यक्ति…
एक सम्पूर्ण कविता जो बहुत सुन्दर है और जिसमें शब्द और भाव का अच्छा संयोजन है।
बहुत कठिन है नैया अपनीधारा के विपरीत चलानाअरे..! कहाँ संभव है प्यारेबिन डूबे मोती पा जानाआशा .. उमीद और प्रेरणा का संचार करती आपकी रचना … लाजवाब है …
सुविधाओं के भंवर जाल मेंजाने कब मझधार बह गए.बहुत खुब जी, सही कहा,धन्यवाद
जो साहस एक लक्ष्य हो, एक नाव होकर्मशील हों, धैर्य अपरिमितमंजिल उनके चरण चूमतीसे रहें समर्पितदो नावों पर चलने वालेकरके हाहाकार बह गए.-सौ फीसदी सही. हालांकि आज के समय में दो नावों पर चलना ही समझदारी कही जाती है.एक सुन्दर कविता के लिए साधुवाद.
दो नावों पर चलने वालेकरके हाहाकार बह गए. लाजवाब रचना…
सुविधाओं के भंवर जाल में ,जाने कब मझधार बह गए ….बहुत सुन्दर लाइन की सृष्टी हुई है आपकी कलम से.सुविधाओं के चक्कर में हम उस किनारे पे रह गए जहां दिल लगता नहीं.मझधार में डूबे होते तो मंजिल पे होते.वाह ….बहुत खूब.
@ अमरेन्द्र जी,नाव स्त्रीलिंग शब्द है!…ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया. "अरमानों की कई नाव थी".. लिखना भी खटक रहा है.सुधारने का प्रयास किया हूँ…सही है या अभी और डूबना बाकी है..?
sudhar se geet aurbhi khoobasurat ban gaya hai.
bahut acchhi kavita….jiwan ki majburi aur raaste batati kavita.
सुन्दर भाव बेहतरीन शब्द संयोजन.जीवन के सत्य का एक पहलू. बेहतरीन अभिव्यक्ति
एक लक्ष्य हो, एक नाव होकर्मशील हों, धैर्य अपरिमितमंजिल उनके चरण चूमतीजो साहस से रहें समर्पित….bahut badhiya, shikshaatmak.
रिश्तों के सब तार बह गएहम नदिया की धार बह गए.अरमानों की अनगिन नावेंविश्वासों की दो पतवारेंजग जीतेंगे सोच रहे थेऊँची लहरों को ललकारें..बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब और शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
BEHATAREEN ……..DHANYAWAAD.WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
सुधार तो हुआ ही है साथ ही साथ एक रवानी भी आई है ! '' सुविधाओं के भंवर जाल में जाने कब मझधार बह गए .. '' — ये पंक्तियाँ सुन्दर लग रही हैं , मैं अपने विद्यार्थी जीवन के अभावों के दिनों में ज्यादा तल्लीन होकर पढ़ पाता था , अब जबसे सुविधाएं मिलने लगी हैं , तल्लीनता घट गयी है ! इसका अफ़सोस होता रहता है !
shandar rachana…chacha ji jiwan prerak bhav se bhari badhiya rachana…badhai
दो नावों पर चलने वालेकरके हाहाकार बह गए.सही कहा ….दो नावों पर पैर रखने वाले अक्सर डूब जाते हैं ……सुंदर भाव ……!!ऐसा भी कर सकते हैं ……अरमानों की नावें कईऔर विश्वासों की दो पतवारे
हम रास्ते में खड़े थे मगरजैसे ही मौका मिला हम दरिया पार कर बह गए।http://udbhavna.blogspot.com/
बार-बार पढ़ा गया है यह गीत..और मधुरता बढ़ती सी जाती रही..हर बार..आप तो हर कला के पंडित हैं..!!गीत अपनी गीतात्मकता बनाये रखने के साथ विषय के साथ पूरा न्याय करता है…सबसे पसंद तो यह पंक्तियाँ आयींसुविधाओं के भंवर जाल मेंजाने कब मझधार बह गए.जिंदगी की मझधारों से जूझते रह कर हौसला बनाये रख पाना ही जिंदगी को उद्देश्य देता है और साहसिक बनाये रखता है…मगर एक बार जब शरीर आराम का स्वाद चख लेता है..फिर तो चांदनी मे भी बदन जलता है और पैरों तले फूल आने पर भी छाले पड़ जाते हैं..!!….और अंतिम पंक्तियाँ भी बहुत धारदार हैं..मगर फिर भी हमारी जिंदगी का तमाम हिस्सा ऐसी ही नाँवों के बीच बैलेंस बनाये रखने मे बीत जाता है..और मंजिल के लघु-पथ कटान हारे हुए साहस की कथा कहते रहते हैं..
जग जीतेंगे सोच रहे थेऊँची लहरों को ललकारेंसुविधाओं के भंवर जाल मेंजाने कब मझधार बह गए ..जग को जीत लेने की सोचने का भी इक वक़्त हुआ करता है जब आवाज़ में इतना दम और होंसले बुलंध हुआ करते है कि दरिया में रह के भी लहरों को ललकार सकते है.पर सुविधाओं की आदत पड़ जाने पे हम इनके भंवर में फस जाते है.जग जीतने के जोश हवा हो जाते है.मंजिल के लघु पथ कटान मेंजीवन के सब सार बह गए.हमारे सारे सिद्धांत धरे के धरे रह जाते है और हम शोर्ट कट follow कर लेते है भले ही हमे रास्ता पता न हो..भावपूर्ण गीत ..
बहुत बढ़िया रचना, पहली बार इधर आया। सम्पर्क मिला मनोज कुमार जी के पोस्ट किए हुए चर्चा-मंच से।उनको भी आभार।बहुत बढ़िया रचना लगी, बधाई स्वीकारें!
sundar shabd, sunhda bhaw, sundar kavita….:)hamare blog pe aayen……:)ab aate rahunga yahan…..
अच्छी सीख दे रही है ये रचना सर…
bahut achhi rachna
05.06.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।http://chitthacharcha.blogspot.com/
बहुत कठिन है नैया अपनी धारा के विपरीत चलानाअरे..! कहाँ संभव है प्यारे बिन डूबे मोती पा जाना शानदार रचना, जीवन के सार को बताती हुईबहुत सुन्दर
जय हो। भरी गर्मी में नदी में बल भर पानी आपकी कविता में मिला। सब जगह पानी लबालब है यहां सर्वत्र जलप्लावन है। नदिया है, नाव है, साहस है। जय हो।
bahut sundar…pahli baar aapke blog par aaya aur ab main bhi ek bechain atma bn gaya hoo aapke agle post ka intjar rahega
दो नावो पर चलने वाले…….मुहावरे का सार्थक प्रयोग ।अज्ञेय जी तो कितनी नावो में………यात्रा करते रहे ।प्रशंसनीय रचना ।
बहुत सुन्दर…बढ़िया रचना….सुंदर भाव .बहुत कठिन है नैया अपनीधारा के विपरीत चलानाअरे..! कहाँ संभव है प्यारेबिन डूबे मोती पा जाना….बधाई स्वीकारें
आपका गीत पर बहुत अच्छा अधिकार है …आनंद आ गया ! हार्दिक शुभकामनायें !