करोरम किसी से करो……..

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नीम बहुत उदास था
फिज़ाओं में धूल है, धुआँ है
न बावड़ी है न कुआँ है
पीपल ने कहा…
आजा मेरी गोदी में बैठ जा !

नीम हंसा…
फुनगियाँ लज़ाने लगीं
कौए ने कलाबाजी करी
वक्त ने पंख फड़फड़ाये
पीपल की गोद में
नन्हां नीम किलकारी भरने लगा

आज
नीम बड़ा हो चुका है
उसकी शाखें पीपल से भी ऊँची हैं
जड़ें एक दूजे से गुत्थमगुत्था
अब चाहकर भी दोनो को अलग नहीं किया जा सकता

उसे देख
प्रभावित होते हैं
हिंदू भी, मुसलमान भी, सिक्ख भी, इसाई भी
वे भी जो ईश्वर को मानते हैं
वे भी जो ईश्वर को नहीं मानते

मैं जब भी
उस वृक्ष के पास से गुजरता हूँ
तो लगता है इसकी शाखें बुदबुदाती रहती हैं
करोरम किसी से करो।
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31 thoughts on “करोरम किसी से करो……..

  1. नीम हंसा…फुनगियाँ लज़ाने लगींकौए ने कलाबाजी करीवक्त ने पंख फड़फड़ायेपीपल की गोद में नन्हां नीम किलकारी भरने लगादेवेन्द्र जी क्या चित्र खींचा है आपने कविता में. बहुत ही उम्दा. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.

  2. मैं जब भीउस वृक्ष के पास से गुजरता हूँतो लगता है इसकी शाखें बुदबुदाती रहती हैंकरोरम किसी से करो।आपकी कविता एक बिम्ब के साथ बहुत गहरी शिक्षा देती है …आपका आभार

  3. उसे देखप्रभावित होते हैंहिंदू भी, मुसलमान भी, सिक्ख भी, इसाई भीवे भी जो ईश्वर को मानते हैंवे भी जो ईश्वर को नहीं मानते बहुत सुंदर रचना

  4. मैं जब भीउस वृक्ष के पास से गुजरता हूँतो लगता है इसकी शाखें बुदबुदाती रहती हैं करोरम किसी से करो।बहुत सुन्दर प्रस्तुति ……..

  5. देवेन्द्र जी,शानदार बिम्बों का इस्तेमाल……एक सम्पूर्ण रचना……पर माफ़ कीजिये मुझ अज्ञानी को करोरम का मतलब समझ नहीं आया……अगर आप बता सके तो…

  6. kewal शब्द "karoram " नहीं samajh पायी…baakee kavita के चिंतन bimb और ras की क्या kahun…अद्वितीय…bejod …मुग्धकारी…ह्रदय स्पर्शी !!!!

  7. karoram ! darasal karoram ek dhvani hai jise maine shabd dene kii himmat kii hai. karoram ke arth ko samjhna hii kavita kii sarthakta hai. karoram ka prayog karke maine pathak ko arth lagane kii svatantrata dii hai. Aj ghar se bahut door hoon siber main likh raha hoon. roman ka prayog karna badhyakarii hai. kasht ke liye khed.

  8. ….karoram ka prayog karke maine pathak ko arth lagane kii svatantrata dii hai……arthaat jahan kavi ko pahunchna tha wahan aap pahunch gaye, ha…..ha…..ha…..बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ…

  9. जरूरी नहीं कि सभी शब्द, शब्दकोष में मिल ही जाये कुछ शब्द हवाओं में गूंजते हैं,अर्थ दृश्य देख कर हमें लगाना होता है.यह भी जरूरी नहीं की आप मेरी बातों से सहमत हों..कष्ट के लिए खेद है.

  10. देवेन्द्र जी ,आपकी रचनाओं में एक अलग सी ध्वनि,लय,ताल होती है .खींचे बिम्बों में मन हिचकोला खाने लगता है ..एक अलग आनंद की अनुभूति होती है ..बहुत सुन्दर .अच्छा लगा….

  11. आगे भी करोरम व्यवहार में रखें ताकि विस्मृत न हो जाय मगर मुझे तो यह कुछ रार मार सा ध्वनित हो रहा है -जबकि अर्थ अलग सा इंगित है -चलिए व्यंजनायें अक्सर प्रत्यक्षतः ऐसी ही विरोधाबोधी लगती हैं मगर किसी ख़ास अर्थ में गूढ़ हो जाती हैं ….करोरम के साथ भी ऐसा ही हो ,,तथास्तु !

  12. .संस्कारों की तिलांजलि देता,एक अजीबो गरीब दिवस है ये । लेकिन आजकल का कोरम है ये ,स्कूल और पार्कों का डेकोरम है ये ,—–करोरम करो भैया , लेकिन डेकोरम बनाए रखो ।———–Decorum – शिष्टाचार , तमीज , सभ्यता , आदाब , मर्यादा , सदाचार , सुन्दरता । .

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