काहे हौआ हक्का-बक्का !
छाना राजा भांग-मुनक्का !
इहाँ कहाँ सुनामी आयल
काहे हौवा तू घबड़ायल
कल फिर उठिहैं सीना ताने
आज भले जापानी घायल
देखा तेंदुलकर कs छक्का
काहे हौआ हक्का-बक्का !
प्रकृति से खिलवाड़ हम करी
नदियन के लाचार हम करी
धरती के दूहीला चौचक
सूरज कs व्यौपार हम करी
खड़मंडल होना हौ पक्का
काहे हौवा हक्का-बक्का
मर गइलन सादिक बाशा
रोच सबेरे 2 जी बांचा
सूटकेस में मिलल प्रेमिका
का खिंचबा जिनगी कs खांचा
ऐसे रोज चली ई चक्का
काहे हौवा हक्का बक्का
रमुआं चीख रहल खोली में
आग लगे ऐसन होली में
कहाँ से लाई ओजिया-गोजिया
प्राण निकस गयल रोटी में
निर्धन कs नियति में धक्का
काहे हौआ हक्का-बक्का !
रोज समुंदर पीया बेटा
सुख सुविधा में जीया बेटा
बिजुरी खेत उगावा चौचक
दिल टूटल जिन सीया बेटा
घड़ा पाप कs फूटी पक्का
काहे हौआ हक्का-बक्का !
…………………….
हक्का-बक्का = आश्चर्य चकित होना।
मुनक्का = नशे की मीठी गोली जिसे बनारसी खाना खिलाना जानते हैं।
सादिक बाशा = ए. राजा के सहयोगी जो कल मरे पाये गये।
खांचा = स्केच, तश्वीर।
आशा तो रखनी ही है, आभार!
मस्त लिखा है…..चऊचक।
.ऐसे रोज चली ई चक्काकाहे हौवा हक्का बक्का…Life moves on …..
हम तो आपकी रचना देख कर हक्का बक्का हैं। लाजवाब राजा जापान गरीब सब मुद्दे ले लिये। लाजवाब । बधाई।
यहका कहत हैं , मंद हास्य !हँसी जेहिमा करुना केरि अन्तः सलिला बहति अहै | आभार !
देव बाबू,मंत्रमुग्ध कर दिया इस पोस्ट ने कितना सच है इसमें और साथ में आपकी अपनी जुबान ने चार चाँद लगा दिए ……अति प्रशंसनीय……और हाँ आपकी पिछली पोस्ट बहुत अच्छी लगी थी वहां तो आपने बोलने का कोई मौका ही नहीं दिया…….रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
प्रशंसनीय….होली की बहुत बहुत बहुत बहुत शुभकामनाएं
जबरदस्त समसामयिक…जरुर पढ़े…पत्नी का अपहरण..
रमुआं चीख रहल खोली मेंआग लगे ऐसन होली मेंकहाँ से लाई ओजिया-गोजियाप्राण निकस गयल रोटी मेंनिर्धन कs नियति में धक्काकाहे हौआ हक्का-बक्का !…..यथार्थ …मार्मिक…गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति … होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
kya bat hai !aap ki ye boli rachna men char chand laga deti hai'bahut badhiya sab ko samet liya ap ne pichli rachna bhi bahut badhiya thi
काहे हौआ हक्का-बक्का !छाना राजा भांग-मुनक्का !लाजवाब..प्रशंसनीय….होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं….
इसको पढ़ कर तो हम भी हो गए हक्का बक्का…:डीहोली की सुभकामनाएँ…
बहुत बढ़िया …सबको ही हक्का बक्का कर दिया …होली की शुभकामनायें
क्षेत्रीय भाषा की यह ताकत बनी रहे…बहुत-बहुत धन्यवाद…!
घड़ा पाप कs फूटी पक्का एक दम सहमत.
बहुत ही सामयिक और सार्थक रचना…
वाह!!जबरदस्त!!
प्रकृति के प्रति सारे अत्याचारों का उत्तम तरीके से अपनी इस रचना में आपने चित्रण कर दिया है । वाह या जबरदस्त रिपीट ही लगेगा ।होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ…ब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?अरे… रे… आकस्मिक आक्रमण होली का !
रमुआं चीख रहल खोली मेंआग लगे ऐसन होली मेंकहाँ से लाई ओजिया-गोजियाप्राण निकस गयल रोटी मेंनिर्धन कs नियति में धक्काकाहे हौआ हक्का-बक्का !बहुत समसामयिक और यथार्थ चित्रण..बहुत सुन्दर..होली की हार्दिक शुभकामनायें!
लो सागर ने दे द्यो धक्का।
@@इहाँ कहाँ सुनामी आयलकाहे हौवा तू घबड़ायलकल फिर उठिहैं सीना तानेआज भले जापानी घायल…—–जबरदस्त..
इस कविता की सुन्दरता और गंभीरता ने एक शब्द ऐसा नहीं छोड़ा मेरे पास जिसमे बाँध मैं अपने मनोभाव अभिव्यक्त कर पाऊं…क्या प्रशंसा करूँ…एकदम निःशब्द हूँ..आपके कलम को नमन !!!kripaya हिन्दी के अतिरिक्त इस सरस भाषा में भी लिखते रहिये…कलम सधी हुई है आपकी..अभी अपने परिचितों में यह अग्रेसित करती हूँ…
बहुत ही अच्छी रचना है ! ऊतम शब्द !हवे अ गुड डे ! मेरे ब्लॉग पर आये ! Music BolLyrics MantraShayari Dil SeLatest News About Tech
सब कुछ लपेट लिये हो देवेन्द्र भाई, काहे न होवें हक्का-बक्का? :))
कमेंट देख कर तो हम खुद ही हक्का-बक्का हो गये। लगता है रंजना जी ने ज्यादा ही प्रचार कर दिया है आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ। छुट्टी में सबके घर ..मेरा मतलब है ब्लॉग में पहुँचना ही पड़ेगा।
घड़ा पाप कs फूटी पक्काकाहे हौआ हक्का-बक्का !इ हुई ना बात । का सही बात कही है भैया ।
मस्त जी , हम भी हक्का बक्का हो गये.मुनक्का,,, हमारे यहां मोटे अंगुर को सुखाने पर जो बनता हे उसे कहते हे, किस मिस छोटे अंगुर से ओर मुनक्का, बडे अंगुर सेधन्यवाद
यथार्थ का सुन्दर वैचारिक प्रतुतिकरण…होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं….
वह क्या रचना है!होली के पहले की भाई !अब होली क भी हुई जाए !वाह रंग चढ़ा है पूरा पक्काहोलियाय गए हैं हमरे कक्काकौनो नीमन से ब्लॉगर के ढूंढलगाओ राजा धक्का पर धक्काहोली मुबारक !
गजब भई गजब!!
घड़ा पाप कs फूटी पक्काकाहे हौआ हक्का-बक्का !सही बात कही है, होली की हार्दिक शुभकामनायें.
आपकी पोस्ट/कविता शानदार है। इससे प्रेरित चार लाइनें अर्ज हैं : ब्लॉग जगत में उठल हिलोरहोली छलक उठल चहुँ ओररस बरसत दस दिसा दिगंतजमल जोगीरा फाग अनंतहोंय देविन्दर सबके कक्काकाहे हौआ हक्का-बक्का !:)
हम भी हैं हक्का बक्का। इससे ज्यादा क्या कहें कक्का।
घड़ा पाप कs फूटी पक्का….काहे हौआ हक्का-बक्का !यथार्थ का सुन्दर प्रतुतिकरण…रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
पूरी लय मा बहुत मस्त कविता लिखे हव भैया |ई है भोजपुरी क मिठास !
सोचा टिप्पणी में तुकबंदी कर दूं पर इसकी टक्कर में कुछ नहीं सूझ रहा :)रंगपर्व की शुभकामनायें !
प्रकृति से खिलवाड़ हम करीनदियन के लाचार हम करीधरती के दूहीला चौचकसूरज कs व्यौपार हम करीखड़मंडल होना हौ पक्काकाहे हौवा हक्का-बक्कामर गइलन सादिक बाशारोच सबेरे 2 जी बांचासूटकेस में मिलल प्रेमिकाका खिंचबा जिनगी कs खांचा ऐसे रोज चली ई चक्काकाहे हौवा हक्का बक्काबहुत ही जोरदार ।
मस्त चीज तू लिखले हौवा.मगर भूकंप तो आदमी के होने के पहले भी इससे भी जोर के आते थे.हाँ,बाढ़,तापक्रम व्रिध्धी आदि में आदमी का हाथ जरूर है.
Vah ! bahut badhiya rachana….
sir, aapki aatma ki bechani dekhkar to kaua kya hum bhi hakke bakke rah jaate hain……..waise aapke blog ka title "bechain aatma" bahut interesting hai………..