पहली बारिश में….

रात अचानक

बड़े शहर की तंग गलियों में बसे

छोटे-छोटे कमरों में रहने वाले

जले भुने घरों ने

जोर की अंगड़ाई ली

दुनियाँ दिखाने वाले जादुई डिब्बे को देखना छोड़

खोल दिये

गली की ओर

हमेशा हिकारत की नज़रों से देखने वाले

बंद खिड़कियों के

दोनो पल्ले

मिट्टी की सोंधी खुशबू ने कराया एहसास

हम धरती के प्राणी हैं !

 

एक घर के बाहर

खुले में रखे बर्तन

टिपटिपाने लगे

घबड़ाई अम्मा चीखीं…

अरी छोटकी !

बर्तन भींग रहे हैं रे !

मेहनत से मांजे हैं

मैले हो जायेंगे

दौड़!

रख सहेजकर।

 

बड़की बोली

मुझे न सही

उसे तो भींगने दो माँ!

पहली बारिश है।

 

एक घर के बाहर

दोनो हाथों की उंगलियों में

ठहरते मोती

फिसलकर गिर गये सहसा

बाबूजी चीखे….

बल्टी ला रे मनुआँ..

रख बिस्तर पर

छत अभिये चूने लगी

अभी तो

ठीक से

देखा भी नहीं बारिश को

टपकने लगी ससुरी

छाती फाड़कर !

 

एक घर के बाहर

पापा आये

भींगते-भागते

साइकिल में लटकाये

सब्जी की थैली

और गीला आंटा

दरवज्जा खुलते ही चिल्लाये..

सड़क इतनी जाम की पूछो मत !

बड़े-बड़े गढ्ढे

अंधेरे में

कोई घुस जाय तो पता ही न चले

भगवान का लाख-लाख शुक्र है

बच गये आज तो

पहली बारिश में

अजी सुनती हो !

तौलिया लाना जरा…..

बिजली चली गई ?

कोई बात नहीं

मौसम ठंडा हो गया है !

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