आजादी के 63 साल बाद…..



एक जनगणना मकान

एक प्राचीन शहर। बेतरतीब विकसित एक मोहल्ले की गलियाँ। गलियों में एक मकान । मकान के दरवाजे पर कुण्डी खड़खड़ाता, देर से खड़ा एक गणक । उम्र से पहले अधेड़ हो चुकी एक महिला घर से बाहर निकलती है-
का बात हौ..?
क्या यह आपका मकान है ?
हाँ, काहे ?
देखिए, हम जनगणना के लिए आये हैं, जो पूछें उसका सही – सही उत्तर दे दीजिए.
ई जनगणना का होला..?
गणक समझाने का प्रयास करता है कि इस समय पूरे देश में मकानों की और उन मकानों में रहने वाले लोगों की गिनती हो रही है. सरकार जानना चाहती है कि हमारे देश में कुल कितने मकान हैं, कितने पुरुष हैं, कितनी महिलाएं हैं, कितने बच्चे हैं …..
वह बीच में ही बात काट कर पूछती है…
ऊ सब त ठीक हौ मगर ई बतावा कि एहसे हमें का लाभ हौ..? का एहसे हमरे घरे पानी आवे लगी ? बिजली कs बिल माफ़ हो जाई ? लाईन फिर से जुड़ जाई ?….तब तक दो चार महिलायें और जुड़ जाती हैं.. हाँ भैया, एहसे का लाभ हौ ?

प्रश्नों से घबड़ाया गणक अपना पसीना पोछता है, प्यास के मारे सूख चुके ओठों पर अपनी जीभ फेरता है और फिर से सबको समझाने का प्रयास करता है..

देखिए, जैसे आपको रोटी पकाने के लिए आंटा गूंथना पड़ता है तो आप कैसे गूथती हैं .? कितना आंटा गूथेंगी ? जब तक आपको यह न मालूम हो कि घर में कितने लोग खाने वाले हैं ? वैसे ही सरकार यह जानना चाहती है कि अपने देश में कितने लोगों के लिए योजना बनायें, कितने स्कूल खोले जायं, कितने अस्पताल बनायें, कितनी सड़क, कितने मकान की आवश्यकता है, जो मकान हैं उनमें लोग कैसे रहते हैं..? मकान कैसा है, बिजली पानी है कि नहीं , जब तक सरकार को पूरी स्तिथि की जानकारी नहीं होगी वह कैसे अपनी योजनायें बनायेगी..! ईसीलिये सरकार हर १० वर्ष में अपने देश की मकान गणना और जनगणना कराती है.

मतलब एकरे पहिले भी जनगणना भयल होई ! अबहिन ले सरकार का उखाड़ लेहलस ? कम से कम हर घरे में बिजली पानी त मिलही जाएके चाहत रहल ! हम समझ गैली तोहरे जनगणना से हम गरीबन कs कौनो भला होखे वाला नाहीं हौ. सब बेकार हौ….

अरे, अभी आप नहीं बतायेंगी तो भविष्य में भी कोई लाभ नहीं होगा. जनगणना नही होगी तो मतदाता पहचान पत्र कैसे बनेगा ? वोटर लिस्ट में कैसे नाम चढ़ेगा ?

अच्छा तs ई सब वोट खातिर होत हौ..! हमें नाहीं करावे के हौ जनगणना, हमार समय बर्बाद मत करा, अब ले तs हम दुई घरे कs बर्तन मांज के आ गयल होइत.

सरकार पर, सरकारी कर्मचारियों की बातों पर, सरकारी योजनाओं पर, देश की राजनीति और नेताओं पर गरीब जनता का इतना अविश्वास देख गणक हैरान था. अपना हर वार खाली होते देख वह पूरी तरह झल्ला चुका था. अंत में हारकर उसने ब्रह्मास्त्र ही छोड़ दिया…

देखिए, अगर आपने सहयोग नहीं किया तो हमें मजबूर हो कर लिख देना पड़ेगा कि इस मकान के लोगों ने कोई सहयोग नहीं किया फिर पुलिस आके पूछेगी, तब ठीक है..?

तीर ठीक निशाने पर बैठा .
अच्छा तs बताना जरूरी हौ..?
कब से तो कह रहा हूँ . आप लोगों की समझ में ही नहीं आ रहा है. हाँ भाई हाँ, बताना जरूरी है.
एहसे हमार कौनो नकसान तs ना हौ !
नाहीं.
अच्छा तs पूछा, का जाने चाहत हौवा..?

क्या यह आपका मकान है ?
हाँ.
यहाँ कितने लोग रहते हैं ?
चार .
घर के मुखिया का नाम ?
कतवारू लाल ..
इनकी पत्नी का नाम ?
अरे, उनकर शादी ना भयल हौ. पागल से के शादी करी ? देखा सुतले हउवन… गणक ने एक कमरे वाले जीर्ण-शीर्ण घर के भीतर झाँक कर देखा. एक कृषकाय ढांचा, खटिये पर पड़ा-पड़ा ऊंघ रहा था. पलट कर पूछा …
आप इनकी कौन हैं ?
महिला ने बताया..ई हमार बड़का भैया हउवन…!
अच्छा ! और कौन-कौन रहता है यहाँ ?
हमार तीन भैया अउर एक हम .
अउर दो लोगों की शादी हो चुकी है ?
हाँ.
उनके पत्नी-बच्चे ! वे कहाँ हैं ?
उन्हने कs मेहरारू लैका यहाँ नाहीं रहलिन, नैहरे रहलिन.
अरे, अभी नहीं हैं दो-चार दिन में आ जायेंगी ना !..गणक ने जानने का प्रयास किया .
नाहीं sss……चार पांच साल से नैहरे रहलिन. कब अयीहें कौन ठिकाना !
क्यों ? क्या तलाक हो गया है ?
अरे नाहीं ..ई तलाक – वलाक बड़े लोगन में होला. यहाँ खाए के ना अटल तs चल गयिलिन नैहरे.

तब तक दूसरा भाई भी आ गया…

बढ़ी हुई बाल-दाढ़ी, कमर पर मैली लुंगी, बाएं कंधे पर गन्दा गमछा. लड़खड़ाते-डगमगाते हुए आया और आते ही धप्प से बैठते हुए पूछने लगा…

का बात हौ साहब..?

भगवान का लाख शुक्र वह जल्दी ही बात समझ गया या फिर भीतर कमरे से सुन रहा हो…!

क्या करते हो ?
कुछ नाहीं साहब.
अरे ई का करिहें, साल भर से बिस्तर पर बीमार पड़ल हउवन. ..बीच में ही उसकी बहन ने बताया.
क्या तुम्हारी पत्नी तुम्हें छोड़ कर चली गयी है ?
हाँ, मालिक.
क्यों चली गयी ?
गरीबी सरकार.
राशन कार्ड नाहीं बना ?
राशन कार्ड हौ मालिक लेकिन राशन उठाए बदे पैसा ना हौ.
ओफ़ ! तीसरा भाई.? वह क्या करता है ?
मजदूरी सरकार .
उसकी पत्नी बच्चे ?
वोहू यहाँ ना रहलिन.
क्यों ?
गरीबी सरकार.
अच्छा तो आप बतायिए, आप यहाँ क्यों रहतीं हैं ? क्या आप की शादी नहीं हुई ?
शादी भयल हौ, लेकिन हम यहीं रहीला.
काहे ?
उहाँ भी अइसने गरीबी हौ. हमे खियाए बदे हमरे मरद के पास पैसा ना हौ. उनकर नाक, उनकर गरीबी से बहुत लम्बी हौ. बाहर काम करी ला तs उनकर नाक कट जाला. ईहाँ भाई के घरे कम से कम २-४ घरे कs चूल्हा-चौका करके दू रोटी भरे कs कमा लेईला. कइसेहू पेट कट जात हौ साहब. काहे हमरे गरीबी कs हाल जाने चाहत हौवा ? एहसे आपके का लाभ होई ?

गणक उनकी बातों से मर्माहत और भौचक था. उसे शायद अंदाजा नहीं था कि अभी भी अपने देश में इतनी गरीबी है ! पत्नियाँ, पतियों को छोड़ कर नैहर जा कर, बर्तन मांज कर जीवन यापन कर रहीं हैं. घर में रहकर बाहर काम करने में पतियों की इज्जत जाने का खतरा है.! यह कैसी नाक है ! यह कैसा समाज है ! ये कैसी पंचवर्षीय योजनायें हैं जिनका लाभ आजादी के सत्तरवें दशक तक इन ग़रीबों से कोसों दूर है ! यह कैसी व्यवस्था है ! उसने बात का रुख मोड़ा और अपने को जल्दी-जल्दी समेटने की गरज से सीधा-सीधा प्रश्न करना शुरू कर दिया..

घर में नल है ?
नल हौ पर पानी नहीं आवत.
बिजली है ? तार तो लगा है !
बिजली कट गयल हौ, बिल जमा करे बदे पैसा ना हौ.
घर में कितने कमरे हैं ?
यही एक कमरा हौ . बाक़ी आँगन . जौन हौ आपके सामने हौ सरकार. हमार बात सरकार की तरह झूठ नाहीं होला, गरीब हयी सरकार !
कीचन हौ ?
का ?
खाना कैसे पकता है ? गैस के चूल्हे में, मिट्टी के तेल से ?
अरे नाहीं सरकार, कहाँ से लाई गैस, स्टोव ! लकड़ी-गोहरी, बीन-बान के कैसेहूँ बन जाला ….
गणक ने जल्दी-जल्दी अपना फ़ार्म पूरा किया, रूमाल से माथे का पसीना पोंछा और लम्बी साँसें लेता हुआ घर से बाहर निकला. उसके मुंह से एक वाक्य आनायास निकल गया …गरीबी हौ सरकार.!

46 thoughts on “आजादी के 63 साल बाद…..

  1. सरकार तक पहुंचेंगी ये भावनायें? व्यस्त हैं वो लोग तो कॉमनवैल्थ का भव्य आयोजन करने में, आखिर विदेशियों के सामने देश की इज्जत का सवाल है।

  2. बहुत ही खूबसूरत बुनावट है सत्य और कथ्य की ! हर अगली लाइन नया चमत्कार करती हुई !हाँ भैया, एहसे का लाभ हौ ?अच्छा तs ई सब वोट खातिर होत हौ…फिर पुलिस आके पूछेगी एहसे हमार कौनो नकसान तs ना हौ !बाहर काम करी ला तs उनकर नाक कट जालागरीब हयी सरकार !गज़ब देवेन्द्र भाई गज़ब का व्यंग है !

  3. गणक ने जल्दी-जल्दी अपना फ़ार्म पूरा किया, रूमाल से माथे का पसीना पोंछा और लम्बी साँसें लेता हुआ घर से बाहर निकला. उसके मुंह से एक वाक्य आनायास निकल गया …गरीबी हौ सरकार.! Aah nikalti hai bas!

  4. बहुत अच्छा आखों जैसा देखा हाल वर्णन किया है अपने । हकीकत तो यही है । सब जानते हैं , मानते हैं लेकिन कुछ करते नहीं ।बढ़िया आलेख ।

  5. वैसे वास्तव में इस स्ब्स्से होने क्या वाला है सही पूछा अम्मा जी ने जनगणना से न तो महगाई कम होने वाली न रोज़गार बदने वाला तो हिसाब लगा कर सिर्फ इतना पता चलेगा की कित्नेलोग आज भी इस आज़ाद देश में भूखे सोते है !

  6. अरे यह देश तो सोनिया ओर मन मोहन का है ओर दस साल तक इन्हे बेठे रहने दो…… जो एक कमरे का मकान है वो भी छिन जायेगा… आंखो देखा हाल सुन कर रोंगटे खडे हो गये जी…..

  7. पोल खोलता आलेख लिखने के लिए आभारी हूँ.आपने वो सच्चाई उजागर की हैं, जो जानते-समझते तो सभी हैं लेकिन दुर्भाग्य से इन सब समस्याओं के समाधान का प्रयास कोई नहीं करता.वेल ड़न जी, बहुत बढ़िया.धन्यवाद.WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

  8. घर में नल है ?नल हौ पर पानी नहीं आवत.बिजली है ? तार तो लगा है !बिजली कट गयल हौ, बिल जमा करे बदे पैसा ना हौ.घर में कितने कमरे हैं ?wah!…kitani sundar prastuti!

  9. ई गरीबी हौ सरकार !…कहानी नाहीं ई तो सत्य-कथा हौ सरकार !….बहुत खूब,येक शानदार रचना.

  10. बहुत उम्दा प्रस्तुति..हक़ीकत से रूबरू कराया आपने और बेहद रोचक अंदाज में..सबसे बड़ी बात बनारसी बोली में तो बहुत लाज़वाब लग रही थी यह रचना..खूब कही जनगणना अधिकारी की हाल….बधाई चाचा जी

  11. मेरे लेख पर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद जी , आपको किस नाम से संबोधित करें …बेचैन आत्मा जी …हम तो बस अपने बच्चों से क्या दुनिया भर के बच्चों से प्यार करते हैं , बच्चों की सफलताएं उनकी अपनी हैं …बस हमें तो ठंडी हवाएं आती हैं और हम खुश हो लेते हैं । खैर आपके ब्लॉग पर आकर आपका नाम भी पता चल गया , आपका लेख गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते लोगों के बारे में बहुत कुछ बता गया , और वो नाक वाली बात ..अच्छी प्रस्तुति …

  12. पढ़ कर गणक और गणों दोनों की ही स्थितियों ने बेचैन कर दिया. वास्तव में सुन्दर व्यंग्य गढ़ा है आपने!!

  13. पोस्ट ’जनगणना’ के बारे मे नही वरन ’जन’ के बारे मे है..यह पूरा पढ़ने के बाद ही समझ आता है..मकानवालो के पूछे सवालात बहुत वाजिब हैं..और उनकी चिंताएं और संदेह भी वास्तविक है..रोटी के लिये जूझते लोगों के लिये सरकारी योजनाएं मायने नही लगतीं जब तक उनकी जिंदगी मे कोई सकारात्मक फ़र्क नही आता..यह बात सही कहती है वह ’हमार बात सरकार की तरह झूठ नाहीं होला, गरीब हयी सरकार’..गणना के बाद हर दशक मे सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती गरीबी और गरीबों की तादात सरकारी नीतियों की असफ़लता का ही प्रमाण हैं….पोस्ट की भाषा खास लगती है..हकीकत अच्छे से उभर के आती है..वहीं हल्की-फ़ुल्की शैली विषय पर गैरजरूरी गंभीरता का मुलम्मा भी नही चढ़ने देती..आपकी परिचित शैली…

  14. यह है असली भारत और हम आजादी का जश्न मनाने को एक बार फिर तैयार हैं !बहुत बढियां /उफ़ अफसोसनाक तस्वीर दिखा दी है आपने !

  15. बेचैन आत्मा जी , ज्यादा क्या कहूँ ! बस इतना ही कहूंगा कि जिस गद्य-लेखन का विनम्र अनुरोध महीनों पहले मैंने आपसे किया था उसे विकसित होते देख पुलकित हो रहा हूँ ! किमाधिकम् !

  16. वास्तविकता को बहुत अच्छे से लिखा है। गहरे मे जा कर समस्या को देखना और महसूस करना और सब से बाँटना — लेकिन जिसे सुनना है वो सरकार तो कानों मे तेल डाले बैठी है। बहुत अच्छा लगा आलेख। धन्यवाद।

  17. सच को उजागर किया है | वैसे यह गणक ईमानदारी से काम कर रहा था |अनेक गणकों ने तो नाम और पते के अलावा अन्य जानकारी अपने अनुमान से भर ली |

  18. यथार्थ का सजीव चित्रण है ….. काश नेता लोगों की ड्यूटी लगती जनगणना के लिए …. तब इनको समझ आता जीना किसको कहते हैं …

  19. बेचारा गणक……..सच में…कई बार लगता है कि ये सब सरकार सिर्फ एक फोर्मेल्टी के लिए ही करती है…शायद इस जनगणना में भी नेताओं का ही कोई भला होता हो..

  20. चाचा आपकर व्यंग्य [अध् कर के लगेला कि आप आपन नाम गलत रख लेहले हई……." बेचैन आत्मा"……..नाही आपके " बेचैन करे वाली आत्मा " रखे के चाही………बेहतरीन ,अकाट्य सत्य उजागर किया है आपने.आपका अपना तरुण तिवारी

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