तनहाई नहीं रहती………….

तनहाई नहीं रहती
जब कोई नहीं होता

सुबह-सबेरे
चहचहाते पंछी
(थोड़ा सा दाना फेंको, पानी का कटोरा भर दो, मस्त हो गीत गाते हैं।)
दिन भर
काफिला बना कर दौड़ते रहने वाली श्रमजीवी चीटियाँ
(चुटकी भर आंटे से नहला दो, कैसे भूत जैसे दिखते हैं ! )
गंदगी से घबड़ाकर हमेशा मुंह धोती रहने वाली
सफाई पसंद मक्खियाँ
किचन में उछलते रहने वाले चूहे
(जिन्हें पकड़कर पड़ोसी के दरवाजे पर चुपके से छोड़ने में कितना मजा आता था!)
शाम होते ही
ट्यूब की रोशनी के साथ
घर में साधिकार घुस आने वाले पतंगे
पतंगों की तलाश में
छिपकली
जाल बुनती मकड़ियाँ
रात भर खून के प्यासे मच्छर
चौबीस घंटे सतर्क रहने वाला पालतू कुत्ता
हरदम मौके की तलाश में
दबे पांव कूदने की फिराक में
पड़ोस के बरामदे से झांकती काली बिल्ली
फुदक-फुदक कर
मेन गेट से घर में घुसकर
कुत्ते को चिढ़ाते रहने वाले शरारती मेंढक
हमेशा बात करते रहने वाले
पेड़-पौधे
और भी हैं बहुत से जीव
जीते हैं डरे-डरे
इंद्रियों के एहसास से परे
जो मुझे खुश रखते हैं
नहीं रहने देते
तनहाँ।

………………………………….

30 thoughts on “तनहाई नहीं रहती………….

  1. पेड़-पौधेऔर भी हैं बहुत से जीवजीते हैं डरे-डरेइंद्रियों के एहसास से परेजो मुझे खुश रखते हैंनहीं रहने देते तनहाँ।…………..wakai kitna kuch saath rahta hai

  2. और भी हैं बहुत से जीवजीते हैं डरे-डरेइंद्रियों के एहसास से परेजो मुझे खुश रखते हैंनहीं रहने देतेतनहाँ…बहुत बार अकेले होने पर ध्यान से देखा है इस जीव-जंतुओं को और बिलकुल ऐसे ही कुछ एहसास हैं मेरे। .

  3. किसी के न रहने पर भी तनहाँ न रहने के कारणों ने तो अभिभूत कर दिया. शायद यह एहसास ही तो तनहाई का शोर है

  4. बच्चो कि किलकारियां , फेरीवाले कि पुकार, गाड़ियों से निकली भोंपू कि आवाज़, इत्यादि… इन सबके के होते भी कभी-कभार तनहा ही है हम सब.

  5. ये जीव जन्तु न जाने कब हम्रारे जीवन का एक हिस्सा बन कर हमारी तनहाइयों को हर लेते हैं.. परन्तु जिन्हें हम रोज देखते हैं, और अचानक एक दिन वो दिखाई नहीं देते तो मन वैसे ही दुखी होता जैसे किसी अपने के लिए..बहुत गहराई से विचार किया है आपने… उनके बारे में भी जो इंद्रियों के एहसास से परे हैं.. बहुत खूब

  6. पेड़-पौधेऔर भी हैं बहुत से जीवजीते हैं डरे-डरेइंद्रियों के एहसास से परेजो मुझे खुश रखते हैंनहीं रहने देते तनहाँ।sach kaha kitna kuchh hai aas-paas ,bahut sundar rachna .

  7. सीय राम माय सब जग जानी करहूँ प्रणाम जोरि जुग पानीतत त्वम् असि ….समग्र नैसर्गिक तंत्र के साथ तादात्म्य बनाकर रखने वाला व्यक्ति कहाँ अकेला रह सकता है भला ?बहुत ही सुन्दर कविताकीचन=किचन

  8. और भी हैं बहुत से जीवजीते हैं डरे-डरेइंद्रियों के एहसास से परेजो मुझे खुश रखते हैंनहीं रहने देतेतनहाँ…आदमी तनहा कहाँ रहता है यादें कब पीछा छोडती है और जब इन्सान नहीं, कुछ और होता है |शानदार…..

  9. जो बंदा जड़-चेतन में अभिव्यक्त हो रही अभिव्यक्ति को समझने के प्रयास हो वो कभी भी तनहा कैसे रह सकता है. पाण्डेय जी कुछ लोग तन्हाइयों से घबराते हैं और कुछ भीड़ भाड़ से परन्तु मुझे लगता है की आप दोनों ही स्थितियों में सहज रहते होंगे.

  10. दिन भरकाफिला बना कर दौड़ते रहने वाली श्रमजीवी चीटियाँ…संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता…बधाई….

  11. अगर किसी को ऐसा एकांत मिल जाए तो समाज में खुलेआम घूम रहे दोपाये जानवरों की इस दुनिया में एकांतप्रिय होना ही पसंद करेगा.. आपकी नज़र को दाद देते हैं हम!!

  12. बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने.जीव ही नहीं हवा भी चलती है तो मजा देता है.और टीन के छत वाले घर में रहो और ओले बरसें तो और भी मजा आता है.अपने अंदर झांको,ध्यान करो तो और भी मजा आता है.

  13. हमेशा बात करते रहने वालेपेड़-पौधेऔर भी हैं बहुत से जीवजीते हैं डरे-डरेइंद्रियों के एहसास से परेजो मुझे खुश रखते हैंनहीं रहने देते तनहाँ।वाह, क्या खूब लिखा है आपने। ये ही तो हमारे वास्तविक सहचर हैं जो हमें खूश रखते हैं।बहुत अच्छी कविता।

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