टूटा मौन

टूटा मौन

पसर गया सन्नाटा

वैसे ही जैसे

थमता है शोर

जब आते हैं गुरूजी

कक्षा में

लड़नी होगी

परिवर्तन की लड़ाई

सुधरेगी तभी

लोकशाही

कहीं लोग

खाने के लिए जी रहे हैं

कहीं लोग

जीने के लिए भी नहीं खा पा रहे हैं

कोई सोचता है

क्या-क्या खाऊँ

कोई सोचता है

क्या खाऊँ?

बढ़ा है भ्रष्टाचार

बढ़ी है मंहगाई

अभी तो है

अंगड़ाई

आगे और है

लड़ाई

दे कर

यक्ष प्रश्नों का बोझ

बता कर

समाधान का मार्ग

चले गये गुरूजी

कक्षा से

पसर गया सन्नाटा

छा गई खामोशी

कहीं यह

तूफान से पहले की तो नहीं ?

ऐसे मौके पर

गाते थे बापू

एक भजन

रघुपती राघव राजाराम

सबको सम्मति दे भगवान।

15 thoughts on “टूटा मौन

  1. अहंकार के पुतलों को सन्मति से क्या लेना? जो हमारे लिये मरने को तैयार रहते हैं, हम उनके जीने की तैयारी में सहयोग कैसे करें, यह भी एक प्रश्न है।

  2. जहां जड़ों में मट्ठे की ज़रूरत है वहां पौधे की ऊपरी छंटाई से क्या होगा !

  3. गुरूजी पढ़ा और सिखा तो ठीक ही रहे हैं,भ्रस्टाचार के विरोध में जनचेतना अछ्छि तरह जागरूक हो रही है.ये येक अछ्छी बात है.गुरूजी को कैद कर लिया गया है और लोग सड़क पे उतर आये हैं.मगर यदि जनलोक्पालबिल ही को पास कर दिया जाय और सरकार इसके तहत सारे देश में अनेक कर्मचारियों की भारती करे,जगह – जगह कार्यालय स्थापना करे और भ्रस्टाचार के खिलाफ कार्यवाही सुरु करे,तो जो भ्रस्टाचार इसके कर्मचारी करेंगे उसको कौन देखेगा ?प्रधानमन्त्री,न्यायाधीश,सांसद सब इसके नीचे रहेंगे.ये येक तानाशाही खुद ही स्थापित कर सकती है.

  4. कहीं लोग खाने के लिए जी रहे हैं कहीं लोग जीने के लिए भी नहीं खा पा रहे हैं कोई सोचता है क्या-क्या खाऊँ कोई सोचता है क्या खाऊँ? यतार्थ को दर्शाता गहरा कटाक्ष………बहुत ही सुन्दर |

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